
कांतारा का अर्थ क्या है
कांतारा एक कन्नड़ शब्द है जिसका अर्थ होता है घना जंगल, या उजाड़, यह एक ठीक ऐसा ही शब्द अरबी भाषा में भी है जिसका मतलब ब्रिज होता है. कांतारा सिर्फ एक जंगल नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है जहां इंसान और प्रकृति इतना जुड़ जाते है कि वहां की ऊर्जा और दिव्यता को महसूस किया जा सकता है।
कांतारा की लोककथाओं का इतिहास
कांतारा की लोककथाएं तटीय कर्नाटक के तुलुनाडु क्षेत्र में सदियों से चली आ रही हैं। इनमें भूत कोला नामक धार्मिक अनुष्ठान की खास जगह है, जहाँ आत्माओं और देवताओं की पूजा होती है। कांतारा में पंजुरली और गुलिगा जैसे देवताओं की कहानियां प्रसिद्ध हैं, जो गांव और जंगल की रक्षा करते हैं। ये कथाएं जंगल और ग्रामीणों के बीच भूमि, अधिकार और सुरक्षा के संघर्ष को दर्शाती हैं। इस तरह कांतारा की लोककथाएं प्रकृति और मानव के गहरे संबंध को बताते हुए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व रखती हैं।
कांतारा फिल्म के देवता
कांतारा फिल्म के भगवान का नाम, कांतारा फिल्म के दैव कौन है, Kantara God Name कांतारा फिल्म में दो दैवों को दिखाया गया है. एक हैं पंजुरली दैव और दूसरे हैं गुलिगा .
पंजुरली देव
कुछ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पंजुरली दैव को भगवान विष्णु के श्री वराह अवतार से जोड़ा जाता है। वराह अवतार में भगवान विष्णु ने सूअर के रूप में अवतार लिया था ताकि पृथ्वी को राक्षस हिरण्याक्ष से बचाया जा सके। पंजुरली का वराह जैसा चेहरा और जंगलों से उनका संबंध इस अवतार से उनकी समानता को दर्शाता है।पंजुरली एक दैव हैं, जिन्हें तुलु लोक परंपराओं में एक दयालु लेकिन शक्तिशाली देवता के रूप में पूजा जाता है। वे जंगलों, खेतों और ग्रामीण समुदायों की रक्षा करने वाले माने जाते हैं। पंजुरली का स्वरूप एक वराह जैसा है, और उनकी कहानियों में उन्हें एक उग्र, न्यायप्रिय और प्रकृति से गहराई से जुड़ा हुआ दैव बताया जाता है।
गुलिगा
पंजुरली की तरह, गुलिगा को भी हिंदू धर्म के एक अवतार से जोड़ा जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, गुलिगा दैव को भगवान शिव के एक उग्र रूप या उनके गणों में से एक से संबंधित माना जाता है। हालांकि, तुलु परंपराओं में गुलिगा को एक स्वतंत्र दैव के रूप में भी पूजा जाता है, और उनका संबंध किसी विशिष्ट हिंदू देवता के अवतार से कम, बल्कि स्थानीय लोक परंपराओं और प्रकृति पूजा से अधिक है। कुछ लोग उन्हें भगवान शिव की उग्र शक्ति या काल भैरव जैसे रूपों से जोड़ते हैं, लेकिन यह क्षेत्र और समुदाय के आधार पर भिन्न हो सकता है।गुलिगा को हिंदू धर्म के व्यापक परिप्रेक्ष्य में एक दैव (Deity) के रूप में देखा जाता है, लेकिन उनकी पूजा मुख्य रूप से तुलु नाडु की क्षेत्रीय और लोक परंपराओं तक सीमित है। वे हिंदू धर्म के पारंपरिक देवताओं जैसे विष्णु या शिव से अलग, एक स्थानीय दैव के रूप में अधिक प्रचलित हैं। उनकी पूजा में प्रकृति, पूर्वजों और क्षेत्रीय मान्यताओं का मिश्रण देखा जाता है। गुलिगा का स्वरूप और उनकी पूजा हिंदू धर्म की व्यापक परंपराओं के साथ-साथ स्थानीय आदिवासी और लोक संस्कृति का संयोजन है।
भूत कोला
तुलु नाडु की एक पारंपरिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान-नृत्य परंपरा है। यह तुलु संस्कृति में दैव आराधना (देवताओं की पूजा) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें पंजुरली, गुलिगा जैसे दैवों की पूजा की जाती है। “भूत” शब्द का अर्थ यहां भूत-प्रेत नहीं, बल्कि दैवीय आत्माएं या स्थानीय देवता हैं, जो प्रकृति, पूर्वजों और क्षेत्रीय मान्यताओं से जुड़े हैं। भूत कोला एक रंगारंग और नाटकीय अनुष्ठान है, जिसमें एक पुजारी या कोला नर्तक जिसे “पात्री” कहा जाता है दैव के आह्वान के लिए विशेष वेशभूषा, मेकअप और गहनों के साथ नृत्य करता है। इस दौरान दैव का आत्मा पात्री में प्रवेश करता है, और वह दैव के माध्यम से भक्तों को आशीर्वाद, मार्गदर्शन या समाधान देता है। यह अनुष्ठान संगीत, ढोल, नृत्य और मंत्रों के साथ होता है, जो समुदाय के लिए एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव होता है।
भूत कोला का आयोजन निश्चित तिथियों या त्योहारों तक सीमित नहीं है; यह विभिन्न अवसरों पर किया जा सकता है, जो समुदाय की जरूरतों और परंपराओं पर निर्भर करता है। आमतौर पर इसे निम्नलिखित अवसरों पर मनाया जाता है:
- कई गांवों में, स्थानीय मंदिरों या दैव स्थानों में साल में एक बार भूत कोला का आयोजन होता है, जो आमतौर पर फसल कटाई या स्थानीय कैलेंडर के अनुसार तय होता है। यह अक्सर सर्दियों या मानसून के बाद के महीनों में होता है।
- परिवार या समुदाय किसी विशेष समस्या (जैसे बीमारी, अशांति, या विपत्ति) के समाधान के लिए या आशीर्वाद लेने के लिए भूत कोला का आयोजन करते हैं।
- खेती, मछली पकड़ने, या अन्य महत्वपूर्ण कार्य शुरू करने से पहले दैव का आशीर्वाद लेने के लिए।
- शादी, जन्म, या अन्य महत्वपूर्ण पारिवारिक घटनाओं के दौरान।


